न्यूज़पेपर आर्टिकलस

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शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध

शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच का संबंध हमारे समाज में बहुत पवित्र और उच्चकोटि का माना गया है
        
         गुरु  ब्रम्हा
         गुरु विष्णु
         गुरु देवो महेश्वर:

गुरु शिष्य परंपरा हमारे समाज में हजारों वर्ष पुरानी है मगर आज के समय में या ऐसा कहे कि पिछले कुछ दशको से शिक्षा के व्यवसायिकरण की वजह से यह परम्परा  लगभग लुप्त होने के कगार पर है | इस आलेख को पढने वाले बहुत से पाठक इस बात से भिन्न मत रखेंगें | शिक्षा के व्यवसायिकरण से हमारे समाज को सिर्फ नुकसान ही नहीं हुआ है बल्कि कुछ लाभ भी हुएं है | मगर इसका अर्थ यह नहीं है की उन फायदों के आड़   में शिक्षा के व्यवसायिकरण का समर्धन किया जाये | शिक्षा के व्यवसायिकरण के दोरान हमने दो प्रमुख बिन्दुओं पर अपने सभी संसाधन लगाए—­
                            1.  गुणवक्ता
                            2.  प्रतिस्पर्धा

इस आलेख में हम शिक्षा की गुणवक्ता के सम्बन्ध में बात करेंगे | हम प्राथमिक विद्यालय के सन्दर्भ में हम यह कह सकते है की शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा की गुणवक्ता में महत्वपूर्ण योगदान देता है शिक्षा मनोविज्ञान का सहारा ले कर हम प्राथमिक विद्यालय का वातावरण मुख्य रूप से शिशकों को यह अवसर प्रदान करता है कि वह शिक्षा मनोविज्ञान का प्रयोग करके छात्र छात्राओं को प्रोत्साहित करे ताकि वह पाठ्यक्रम के अन्दर रूचि ले प्राथमिक विद्यालय में यह महत्वपूर्ण नहीं है कि बालक बालिकाओं ने कितने समय में पाठ्यक्रम पूरा किया या कितने अंक से उत्तीर्ण हुए | प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा मनोविज्ञान के प्रयोग से शिक्षकों का मुख्य कार्य यह है कि वह छात्रो में शिक्षा के प्रति रूचि पैदा करें अगर प्राथमिक विद्यालय में छात्रों को सही वातावरण मिलेगा तो वह आगे जीवन में सफलता प्राप्त करेंगे और एक अच्छे नागरिक के रूप में देश की सेवा करेंगे |



प्राथमिक विद्यालय के वातावरण में अर्थात primary School  में यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि बालक - बालिकायें छात्र -छात्राएं  पाठ्यक्रम को समझे बल्कि यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि शिक्षक उनको समझे और उनको सहजता से शिक्षा या पाठ्यक्रम को स्वीकार करने में मदद करे यह मनोविज्ञान का गुढ  विषय है कि पञ्च से नौ वर्ष के बालक बालिकायें किस तरह से शिक्षा को ग्रहण करते है या पाठ्यक्रम को ग्रहण करते है उनके सीखने का क्या तरीका  है अगर कोई बालक बालिकायें सीखने में कमजोर है  तो किस तरह से मनोविज्ञान का प्रयोग करके उसमे सुधार  लाया जाय | प्राथमिक विद्यालय में अर्थात (प्राइमरी स्कूल ) में शिक्षक या शिक्षिका एक मात्र शिक्षक न होके बल्कि मनोवैज्ञानिक के रूप में कार्य करते है या कुछ इस तरह से कहे कि प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक –शिक्षिकाऐ शिक्षक से ज्यादा एक मनोवैज्ञानिक का कार्य करते है यहाँ यह महत्वपूर्ण नही है कि शिक्षक शिक्षिकाओ ने मनोविज्ञान में कोई डिग्री प्राप्त की हो | वैसे सामान्यतः प्राइमरी टीचर के लिए जो आवश्यक योग्यताएँ है उनमे शिक्षा मनोविज्ञान की शिक्षा दी जाती है लेकिन शिक्षक शिक्षिकाओ से  यह अपेक्षा की जाती है कि वह छात्रो को समझे और उनके साथ आने वाली रोजमर्या की समस्याओ को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से या शिक्षा मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से हल करे| शिक्षा के व्यवसायिकरण के वजह से एक और अजीबोगरीब से सी स्थिति देखी गई है कि जब बालक बालिकाएँ प्राथमिक स्कूल में एडमिशन के लिय जाते है तो उनका चयन इंटरव्यू और रिटर्नटेस्ट के आधार पर होता है रिटर्नटेस्ट (लिखित परीक्षा) ये व्यवस्था बेहद अजीबो गरिब और हास्यप्रद है या हम यह कह सकते है की मनोविज्ञान की दृष्टी से यह अनावश्यक है और इस तरह व्यवस्था का कोई औचित नहीं है | चार पञ्च या छ वर्ष  के बच्चो को लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के द्वारा आंकना और  उनकी क्षमताओ की जाँच करना नामुकिन है | प्राथमिक विद्यालयो का मुख्य कार्य मनोवैयानिक दृष्टि से यही है कि हम छात्र छात्रो की क्षमताओ को उज्जागर करे और उन्हें माध्यमिक विद्यालयों के लिय तैयार करे | साक्षात्कार और लिखित परीक्षा के लिए वह प्राथमिक विद्यालय को पास करने के बाद ही तैयार हो पाते है | इस लिए यहाँ पर यह समझने की आवश्यकता है कि प्राथमिक विद्यालयों में छात्र छात्राओ का या बालक बालिकाओ को एक कुम्हार की मिट्टी की तरह परिवेश मिलना चाहिय जिसे शिक्षक एक कुम्हार की तरह खुबसूरत आक़ार में गढ़ दे |






1 comment:

  1. Hello sir my name is shivani pls give your number I will contact I. Ask you something about physcialogic

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